गुरु कौन ?
बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत रहते थे। उनके पास शिक्षा लेने हेतु दूर-दूर से शिष्य आते थे। एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, स्वामी जी आपके गुरु कौन है? आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है? महंत शिष्य का सवाल सुन मुस्कुराए और बोले, मेरे हजारो गुरु हैं! यदि मै उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनो लग जाए। लेकिन फिर भी मै अपने तीन गुरुओ के बारे मे तुम्हे जरुर बताऊंगा।
मेरा पहला गुरु था एक चोर
एक बार में रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकाने और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आख़िरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैंने उससे पूछा कि मैं कहा ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होंगा, लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ आज कि रात ठहर सकते हो। मैं एक चोर हु और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होंगी तो आप मेरे साथ रह सकते है।
वह इतना प्यारा आदमी था कि मै उसके साथ एक रात कि जगह एक महीने तक रह गया! वह हर रात मुझे कहता कि मै अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो। जब वह काम से आता तो मैं उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हे? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, और हमेशा मस्त रहता था।
कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस अपने घर आ गया। जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता था और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता ।
मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था
एक बार बहुत गर्मी वाले दिन मै कही जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था और पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया। वह भी बहुत प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी ही परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया। वह परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी के पास लौट आता।
अंततः, अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सिख मिल गई। अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का हिम्मत से साहस से मुकाबला करता है।
मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है
मै एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलती हुई मोमबत्ती लें जा रहा था। वह पास के किसी मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था। मजाक में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है? वह बोला, जी मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था, जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहा से वह ज्योति आई?
वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फूंख मारकर बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहा गई वह? आप ही मुझे बताइए। मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ। *तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए। शिष्य होने का अर्थ क्या है?
शिष्य होने का अर्थ है पुरे अस्तित्व के प्रति खुले होना।हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना।कभी किसी कि बात का बुरा नहि मानना चाहिए,किसी भी इंसान कि कही हुइ बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए के उसने क्या-क्या कहा और क्यों कहा तब उसकी कही बातों से अपनी कि हुई गलतियों को समझे और अपनी कमियों को दूर करें।
जीवन का हर क्षण,हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है।हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातो को सीखते रहना चाहिए।यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है,यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की नहीं..!!
Who is your Guru?
Once upon a time, in a certain town, there lived a highly influential sage. Disciples came from far and wide to learn from him. One day, a disciple asked the sage, “Master, who is your guru? From whom have you learned?” The sage smiled upon hearing the question and replied, “I have had thousands of gurus! If I were to count their names, it might take months. But still, I will certainly tell you about three of them.”
My first guru was a thief
Once, I lost my way and reached a village late at night. All the shops and homes were closed. Eventually, I met a man who was trying to break into a wall. I asked him where I could stay, and he said that at this late hour, it would be very difficult to find shelter, but if I wished, I could stay with him for the night. “I am a thief, and if you have no problem staying with a thief, you are welcome to stay with me.”
He was such a kind man that instead of staying just one night, I stayed with him for a month! Every night he would tell me, “I am going to work, you rest, pray.” When he returned, I would ask if he had found anything, and he would say, “Nothing today, but if God wills, something will come soon.” He was never disappointed or sad, always joyful.
After some days, I thanked him and returned home. When years of meditation passed without much happening, there were moments when I felt utterly hopeless and was about to give up my practice. Then I would suddenly remember the thief who always said, “If God wills, something will surely come,” and this would keep me focused and immersed in my meditation.
My second guru was a dog
One very hot day, as I was searching for water, a dog came running towards me, also very thirsty. There was a river nearby. The dog looked into the river and saw another dog there – its own reflection. The dog was scared by the reflection, barking and retreating, but because of its thirst, it kept returning to the water.
Finally, despite its fear, the dog jumped into the river, and the reflection disappeared. Watching the dog’s courage taught me a great lesson. Despite fear, one must take the leap. Success comes to those who confront their fears with courage.
My third guru was a small child
As I was passing through a village, I saw a small child carrying a lit candle. He was going to place the candle in a nearby temple. In jest, I asked him if he had lit the candle himself. He said, “Yes, I did.” So I asked him, “There was a moment when the candle was unlit, and then there was a moment when it was lit. Can you show me the source from which the light came?”
The child laughed, blew out the candle, and said, “Now you have seen the light go. Where did it go? You tell me.” My ego was shattered, my knowledge gone. In that moment, I realized my own ignorance. *From then on, I washed my hands of mere knowledge. What does it mean to be a disciple?
To be a disciple means to be open to the whole existence. To be ready to learn from every direction, at all times. One should never take offense at someone’s words; instead, sit in solitude and ponder what they said and why. Then understand your own mistakes from their words and improve upon your shortcomings.
Every moment of life gives us an opportunity to learn something. We should always remain disciples in life, continuing to learn good things. Life brings us a guru in one form or another every day; it depends on us whether we can be like that sage, a disciple who is able to receive the teachings offered by the guru or not…!!